कुष्ठ रोग (सोरायसिस) एक चर्म रोग| Kushat Rog

कुष्ठ रोग-यह एक जीर्ण रोग है और अगर वक्त पर इसका इलाज ना किया जाये तो ये कई गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है। अंग्रेजी चिकित्सा में इसको लाईलाज बीमारी कहा गया है,
इसमें दी जाने वाली अंग्रेजी दवाइयाँ इस रोग के लक्षणों को सिर्फ कम करती हैं, और कुछ समय के बाद रोग लक्षण पुन: उभर आते हैं। अंग्रेजी चिकित्सा प्रणाली के अनुसार सोरायसिस से ग्रसित व्यक्ति को जीवनभर दवाइयाँ खानी पड़ती हैं और उन दवाइयों के काफी दुष्परिणाम भी देखने को मिलते हैं पर
आयुर्वेद में इसका काफी प्रभावशाली इलाज संभव है, तो जरूरत है कि हम इस रोग की शुरूआती जड़ को पहचाने और सही तरीके से इलाज करके इस गंभीर रोग से मुक्ति पाएँ।

कुष्ठ रोग (सोरायसिस) क्या है?

सोरायसिस एक चर्म रोग है, जिसको हम सामान्य तौर पर कुष्ठ रोग के नाम से जानते हैं। लेकिन आयुर्वेद के अनुसार हम सोरायसिस के बारे में पढ़ें तो ये कुल अठारह प्रकार के कुष्ठ रोगों में से एक है।

सोरायसिस एक त्वचा सम्बन्धित बीमारी है, जिसमें त्वचा की कोशिकाएँ बहुत तेजी से विकसित होती हैं। यह एक ऑटो-इम्यून और जीर्ण रोग है। इसमें त्वचा की कोशिकाएँ असामान्य स्तर पर बढ़ने लग जाती हैं, विषाक्त पदार्थों का शरीर व खून में जमाव होने लगता है, जो बाहरी त्वचा पर भी परत के रूप में दिखना शुरू हो जाता है। इस जमाव की वजह से व्यक्ति की त्वचा कुरूप दिखने लगती है। व्यक्ति के शरीर पर जहाँ भी इन विषाक्त पदार्थों का जमाव होता है, वहाँ जलन और खुजली जैसी परेशानियाँ होती हैं।

29 अक्टूबर को विश्वभर में विश्व सोरायसिस दिवस के रूप में मनाया जाता है, हाल ही में मनाये गये सोरायसिस दिवस का मुख्य विषय था,आओ जुड़े रहें (Let’s Get Connected), जिसके द्वारा सोरायसिस के रोगियों को अपने आसपास के लोगों से जुड़े रहने के लिए प्रेरित किया गया, ताकि उनमें नकारात्मक तनाव को कम किया जा सके। दुनियाभर में लगभग 125 मिलियन लोग सोरायसिस से पीड़ित हैं, जो कुल जनसंख्या का 2 से 3 प्रतिशत है। केवल में ही सोरायसिस के 9,44%72.8% मरीज हैं। आंकड़ों के मुताबिक ये पाया गया है कि सोरायसिस के 10% से 30% मरीज सोरियाटिक गठिया (Psoriatie Arthritis) का शिकार बनते हैं।

कुष्ठ रोग (सोरायसिस) के लक्षण

कुष्ठ रोग (सोरायसिस) से पीड़ित व्यक्ति में पाए जाने वाले कुछ सामान्य लक्षण हैं-

  • लाल चकत्ते
  • सफेद चमकीली परत
  • खुश्क त्वचा
  • कटी-फटी त्वचा
  • प्रभावित क्षेत्र पर खुजली/जलन
  • त्वचा का रंग बदलना
  • नाखूनों का बदला हुआ रंग
  • चिड़चिड़ापन
  • अत्यन्त पसीना आदि।
  • अत्यन्त पसीना आदि।
  • त्वचा पर जमी ये परत,थोड़े ही समय में काली पड़ना शुरू हो जाती हैं।
  • इनके अलावा कुछ ऐसे भी लक्षण हैं, जो इस रोग की गंभीरता को दर्शाते हैं, जैसे कि-
  • खुजली करते वक्त खून आना
  • प्रभावित क्षेत्र से रक्तस्राव
  • जोड़ों में सूजन और दर्द
  • जोड़ों में अकड़न
  • रूसी, बालों का झड़ना आदि।
  • यह रोग ज्यादातर सिर पर, माथे के ऊपर बालों की जड़ों के पास, कान के पास, नाक पर, कोहनियों, टखनों, अंगुलियों पर होता है।
  • यह गोलाकार में होता है व त्वचा भुरभुरी से होकर परत सी उतरती है।

(सोरायसिस) के निदान/कारण

सोरायसिस का इलाज करने के दौरान, चिकित्सकों द्वारा कई कारण देखे गए हैं, जो इसकी शुरूआत के लिए जिम्मेदार होने के
साथ-साथ, इस रोग को बढ़ाने में भी अपना योगदान देते हैं। इसके सबसे प्रमुख कारण हैं, हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली में होने वाली असमानताएँ, आनुवंशिकता और असंतुलित व विरुध आहार। इसके अन्य कई कारण भी हैं जो इस बीमारी की शुरूआत या इसको बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होते हैं,
जिनमें अत्यंत पसीना आना एक ऐसा घटक है जो इसका कारण होने के साथ-साथ इसका लक्षण भी है। इसके अलावा कुछ निम्नलिखित कारण हैं, जो इस रोग के लिए जिम्मेदार होते हैं-

  • त्वचा संक्रमण
  • गले में संक्रमण
  • त्वचा की कोई चोट, या घाव
  • किसी कीड़े के काटने की वजह से हुई कोई परेशानी
  • तेज धूप से जली हुई त्वचा
  • ज्यादा ठंडा मौसम
  • चिन्ता / तनाव
  • धूम्रपान
  • अधिक मात्रा में मदिरा या शराब का सेवन।
  • विटामिन ‘C’ या ‘E’ की कमी।
  • कुछ दवाइयों का इस्तेमाल (लिथियम, हाई ब्लड प्रेशर की दवाएँ,आदि।)
  • पराग और धूल की एलर्जी
  • हॉर्मोन्स में परिवर्तन

कुष्ठ रोग (सोरायसिस) के प्रकार

सोरायसिस सामान्यतः सात प्रकार के हैं-

  1. प्लाक सोरायसिस (Plaque Psoriasis): यह सबसे सामान्य प्रकार है, जिसमें शरीर पर लाल चकत्ते पड़ जाते हैं।
  2. नेल सोरायसिस (Nail Psoriasis: नेल सोरायसिस में नाखूनों पर पीली परत जमना, विघटित नाखून, नाखूनों पर दरारें, आदि समस्याएँ दिखने लगती हैं।
  3. ग्युटेट सोरायसिस (Guttate Psoriasis): इस तरह के सोरायसिस में शरीर पर छोटे-छोटे लाल दाने दिखने शुरू हो जाते हैं।
  4. इनवर्स सोरायसिस (Inverse Psoriasis) : यह सोरायसिस शरीर के उन अंगों पर होता है, जहाँ की त्वचा किसी दूसरे हिस्से से बार-बार जुड़ती या रगड़ती रहती है, जैसे- बगल, घुटनों का अंदरूनी हिस्सा, गुप्तांग आदि।
  5. एरिथ्रोडर्मिक सोरायसिस (Eryth- rodermic Psoriasis): यह सबसे ज्यादा गंभीर प्रकार का सोरायसिस है, जिसमें शरीर पर चकत्ते पड़ जाते हैं और उनमें खुजली के साथ-साथ तेज दर्द भी रहता है।
  6. सोरियाटिक गठिया (Psoriatic Arthritis) : यह शरीर के सभी जोड़ों ई को प्रभावित करता है, जिसकी वजह से जोड़ों पर सूजन, अकड़न, खुजली, जलन और दर्द जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं।
  7. पोस्ट्युलर सोरायसिस (Postular Psoriasis): इस प्रकार के सोरायसिस का में लाल चकत्तों के आसपास सफेद या पीली चमड़ी जमा होने लगती है।

कुष्ठ रोग (सोरायसिस) से प्रभावित होने वाले शरीर के अंग

सोरायसिस, रोगी के शरीर के किसी भी अंग की त्वचा को प्रभावित कर सकता है, पर मुख्यतौर पर कोहनी, घुटने, सिर की त्वचा, हथेलियाँ, बगल, पीठ के निचले हिस्से और तलवों पर इसका अत्यधिक असर देखा जाता है।

आयुर्वेद के अनुसार कुष्ठ रोग (सोरायसिस)

आयुर्वेद के अनुसार सोरायसिस को मण्डल कुष्ठ कहा गया है यह एक पित्त प्रधान त्रिदोषज व्याधि है, जो लसिका(Lymph), रक्त (Blood), माँस (Muscles) और मेद (Adipose Tissue) को अत्यधिक प्रभावित करती है। जिसमें त्रिदोषों के असंतुलित हो जाने से निम्नलिखित लक्षण दिखाई देते हैं-

  • कफ दोष के बढ़ने से खुजली।
  • वात दोष के बढ़ने से महसूस करने की क्षमता का कम हो जाना।
  • पित्त दोष के बढ़ने से जलन।

सोरायसिस के उपद्रव

अगर सोरायसिस का सही समय पर इलाज नहीं किया जाए, तो यह कई गंभीर बीमारियों का कारण बन जाता है, जैसे कि-

  • सोरियाटिक गठिया (Psoriatic Arthritis)
  • नेत्रश्लेष्मकलाशोथ (Conjunc-tivitis)
  • आँखों का जल्दी-जल्दी फड़कना
  • चयापचय संबंधी विकार (मोटापा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, आदि)
  • मस्तिष्क संबंधी विकार (भावनात्मक अशान्ति, अवसाद, आदि) (Neuro-logical Disorders)

कुष्ठ रोग (सोरायसिस) का आयुर्वेदिक उपचार

आयुर्वेद में इस गंभीर बीमारी का इलाज संभव तो है ही, साथ ही ये आपको जीवनभर दवाइयाँ खाने की परेशानी से भी बचाता है। आयुर्वेद के उन्हीं पौराणिक सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए प्लैनेट आयुर्वेदा में कार्यरत् आयुर्वेद विशेषज्ञों द्वारा बनवायी गयीं अत्यधिक असरदार हर्बल दवाइयाँ 100% शुद्ध हैं और इनका कोई भी दुष्परिणाम नहीं है। सोरायसिस के लिए प्लैनेट आयुर्वेदा की तरफ से “सोरा केयर पैक”, जिसमें निम्नलिखित दवाइयाँ उपलब्ध हैं-

  1. नवकार्षिक चूर्ण
  2. रेडियंट स्किन हेयर नेल्स फार्मूला
  3. नीम कैप्सूल्स
  4. मंजिष्ठा कैप्सूल्स
  5. पित्ता बैलेंस
  6. रेक्यूमिन जैल
  7. जात्यादि तैलम

उपरोक्त सभी आयुर्वेदिक दवाएँ रोगी के शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालती हैं, रक्त की शुद्धता को बनाये रखने में मदद करती हैं, और आपकी त्वचा के प्राकृतिक स्वास्थ्य को कायम रखती हैं। इसके साथ- साथ ये सभी हर तरह के संक्रमणों से बचाने में, और हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में भी काफी असरदार साबित होते हैं। यह सभी हर्बल उत्पाद, आपकी त्वचा की कोमलता और लचीलापन को लौटाते हैं, और उसको जरूरी पोषण भी देते हैं।

सोरायसिस रोगी का आहार और जीवनशैली

  • सोरायसिस में व्यक्ति की त्वचा कुरूप नजर आने लगती है, जिसकी वजह से काफी लोग उसके पास आने या उससे बात करने में भी कतराते हैं।
  • आधुनिक चिकित्सा प्रणाली में इसको स्पर्शजन्य बीमारी नहीं माना गया है, पर आपको बता दें कि यह एक संक्रमण रोग होने के कारण, आयुर्वेद इसको एक संसग्रज (फैलने वाला रोग) ही मानता है। तो इसका सही इलाज करने और इससे बचने के लिए, सोरायसिस के मरीजों को और उसके आसपास रह रहे लोगों को कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए।
  • यह जानना भी जरूरी है कि सोरायसिस के रोगियों से पूर्ण रूप से दूरी बनाना भी सही नहीं है, यह उन पर नकारात्मक असर डालता है, जिसकी वजह से उनका इलाज करना भी मुश्किल हो सकता है। तो आइए जानते हैं कि कैसे आप सोरायसिस के मरीजों से बिना दूरी बनाये उनकी मदद कर सकते हैं इस बीमारी को फैलने से भी रोक सकते हैं।

कुष्ठ रोग (सोरायसिस) के बचाव व निर्देश

  • सर्वप्रथम शरीर को साफ-सुथरा रखें और सकारात्मक रहें। बेहतर होगा कि सोरायसिस के रोगी सिर्फ सूती कपड़ों का ही इस्तेमाल करें। इसके अलावा निम्न दिए गए घरेलू उपचारों का उपयोग करके हम इस गंभीर त्वचा रोग से राहत पा सकते हैं-
  • नीम की पत्तियों को पीसकर प्रभावित स्थानों पर लगाने या पत्तियों को उबालकर उसके पानी से प्रभावित अंगों को धोने से, खुजली कम होती है, साथ ही नीम का उपयोग चकत्तों के फैलाव को भी रोकता है।
  • घृतकुमारी (एलोवेरा) का ताजा गूदा, नींबू का रस मिलाकर त्वचा पर लगाने से सोरायसिस में आराम मिलता है।
  • एलोवेरा के गूदे के दो-तीन चम्मच प्रतिदिन दो बार सेवन करने से अंदरूनी ठंडक मिलती है, और यह जलन से भी राहत दिलाता है।
  • 20-30 ग्राम अलसी के बीजों का प्रतिदिन सेवन आपकी त्वचा को नमी और निखार प्रदान करता है और त्वचा की सुंदरता को लम्बे समय तक बनाये रखता है।
  • मसालेदार या पचने में भारी (जैसे- माँस, अंडा,मटर, उड़द आदि) भोजन का परहेज करने से सोरायसिस के इलाज में ज्यादा लाभ होता है, और दवाइयाँ भी जल्दी असर करती हैं।
  • सोरायसिस में फाइबर और प्रोटीन युक्त भोजन लाभदायक होता है, जिनमें एंटी- इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो शरीर की गंदगी निकालने में मदद करते हैं।
  • सोरायसिस के रोगियों को अत्यधिक नमकीन और खट्टे भोजन के सेवन से बचना चाहिए।
  • शराब और धूम्रपान का सेवन करने से सोरायसिस से छुटकारा पाना बहुत ज्यादा मुश्किल हो जाता है।
  • नीम, तिल या नारियल के तेल में कर्पूर मिलाकर हल्के हाथ से शरीर पर लगाना काफी राहत देता है।
  • तेल का प्रयोग करने के बाद 5-10 मिनट की हल्की धूप लेना भी काफी हितकारी होता है।
  • सोरायसिस के मरीज को अत्यधिक मात्रा में पानी पीना चाहिए और त्वचा की नमी को भी कम नहीं होने देना चाहिए, ऐसा करने से इस बीमारी का सही इलाज कर पाना आसान हो जाता है।
  • कपालभाति और अनुलोम-विलोम के प्रतिदिन अभ्यास सोरायसिस से निजात दिलाने में लाभदायक होते हैं।
  • हर्बल दवाइयों के साथ पंचकर्म क्रियाएँ, जैसे कि विरेचन, वमन, आदि करवाने से सोरायसिस में काफी जल्दी लाभ मिलता है, और यह भी देखा गया है कि विशेषज्ञों द्वारा बताये गये पंचकर्मों को अच्छी तरह से करवाने के बाद सोरायसिस के दोबारा होने की संभावना खत्म हो जाती है।
  • चूँकि सोरायसिस का एक कारण तनाव भी होता है, या सोरासिस होने के बाद भी तनाव के बढ़ने की अत्यधिक संभावनाएँ होती हैं, तो सुदर्शन क्रिया करके आप अपने शरीर से विषैले पदार्थों और नकारात्मक भावनाओं को बाहर निकालकर अपने इलाज को अधिक प्रभावशाली बना सकते हैं।
  • आम साबुन का इस्तेमाल करने से भी त्वचा रूखी हो जाती है और सोरायसिस के लक्षणों को बढ़ाने के लिए भी जिम्मेदार होता है, इसलिए बेहतर होगा कि ऐसे में किसी हर्बल या पैराफिन-फ्री साबुन का इस्तेमाल किया जाये। जिसके लिए आप प्लैनेट आयुर्वेदा • टी-ट्री- एलोवेरा प्रीमियम हैंडमेड बाथिंग बार (Tea-Tree-Aloevera Premium Handmade Bathing Bar) या प्लैनेट आयुर्वेदा रॉयल हनी शॉवर जैल (Royal Honey Shower Gel) का इस्तेमाल कर सकते हैं।

उपरोक्त दी गयी सारी जानकारी का निष्कर्ष यह निकलता है कि सोरायसिस का सर्वोत्तम और सबसे प्रभावी इलाज आयुर्वेद चिकित्सा प्रणाली में उपलब्ध प्राकृतिक जड़ी-बूटियों से ही संभव है। प्लैनेट आयुर्वेदा की शुद्ध और प्राकृतिक जड़ी- बूटियों से बनी दवाइयाँ आपको इस गंभीर बीमारी से निजात दिलाने में पूरी तरह सक्षम हैं।

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