कैंसर भगाएं शाकाहार अपनाएं-कैंसर अत्यंत भयावह व्याधि है, जो शरीर में मौजूद डीएनए की संरचना में अप्रत्याशित परिवर्तन से उत्पन्न होती है। इसमें सामान्य शारीरिक कोशिका निरंतर विभाजन द्वारा गुणित होकर असामान्य वृद्धि के कारण विस्तृत रूप धारण कर लेती है। वस्तुतः भिन्न-भिन्न अंगों के कैंसर स्वयं में एक पृथक व्याधि हैं। कैंसर 100 से भी अधिक प्रकार का होता है और शरीर के किसी भी भाग को प्रभावित कर सकता है। विश्व में सर्वाधिक पाया जाने वाला कैंसर है- फेफड़े का कैंसर, जिससे लगभग 17.6 प्रतिशत पुरुष प्रभावित हैं। जबकि भारतवर्ष में मुख-गुहा का कैंसर पुरुषों में तथा स्तन व गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर महिलाओं में सर्वाधिक पाए जाने वाले कैंसर हैं। कैंसर किसी भी आयु-वर्ग में हो सकता है, परंतु उम्र बढ़ने के साथ ही इसकी संभावना भी बढ़ती जाती है।
कैंसर की उत्पत्ति के प्रमुख कारण हैं.
- खान-पान संबंधी ख़राब आदतें
- शारीरिक निष्क्रियता
- प्रदूषित वातावरण
- कुछ कैंसरकारी संक्रमण (वायरस, बैक्टीरिया अथवा परजीवी)
- अल्ट्रा-वायलेट तथा आयोनाइजिंग रेडिएशन
- आनुवांशिक
कैंसर को पहचानें
नीचे बताए गए कैंसर के आरंभिक लक्षणों के प्रति सतर्क
व सावधान रहें-
- न भरने वाला घाव
- असामान्य रक्तस्राव या मवाद निकलना
- स्तन में अथवा शरीर में कहीं गांठ होना
- मल-मूत्र संबंधी आदतों में असामान्य परिवर्तन
- लगातार अपच या भोजन निगलने में कठिनाई
- आवाज का भारीपन या लगातार कष्टप्रद खांसी
- तिल अथवा मस्से में अचानक कोई परिवर्तन
- बिना ज्ञात कारण के शरीर में रक्त की कमी होना
- अचानक अथवा अकारण ही शारीरिक वजन में गिरावट आना
अगर इनमें से कोई भी लक्षण कुछ हफ़्तों से अधिक समय तक सामान्य चिकित्सा द्वारा ठीक नहीं होता है, तो रोगी को तुरंत सुप्रशिक्षित चिकित्सक से भली प्रकार जांच करवाना चाहिए। दुर्भाग्यवश भारत में लगभग 70-80 प्रतिशत कैंसर रोगी चिकित्सक के पास रोग की विकसित अवस्था में पहुंचते हैं, जिससे अपेक्षित परिणाम मिल पाना दुष्कर हो जाता है। ध्यान रहे, कैंसर के उपचार की सफलता उसके त्वरित निदान
एवं कुशल इलाज पर निर्भर है।
प्रचलित भ्रांतियां एवं तथ्य
कैंसर के विषय में सही जानकारी के अभाव से लोगों में
अनेक भ्रांतियां प्रचलित हैं, जैसे
मिथक : कैंसर छूत की बीमारी है।
तथ्य : कैंसर छूत की बीमारी नहीं है, हालांकि कुछ तरह के कैंसर वायरस, बैक्टीरिया अथवा परजीवी के कारण होते हैं – जैसे ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एच.पी.वी.) से बच्चेदानी के मुख का कैंसर, हेपेटाइटिस-बी व हेपेटाइटिस-सी वायरस से जिगर का कैंसर, हेलिकोबैक्टर जीवाणु से पेट का कैंसर आदि।
मिथक : कैंसर लाइलाज रोग है।
तथ्य : त्वरित निदान एवं कुशल उपचार द्वारा लगभग 50-60 प्रतिशत कैंसर रोगी पूर्णतया ठीक हो सकते हैं।
मिथक : नीम-हक़ीम या जड़ी-बूटी द्वारा कैंसर का इलाज संभव है।
तथ्य : वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कैंसर के सफल उपचार में इनकी उपयोगिता नहीं है। कैंसर का इलाज सदैव प्रशिक्षित डॉक्टर से ही कराना चाहिए।
मिथक : सकारात्मक सोच से कैंसर पूरी तरह ठीक हो सकता है।
तथ्य : इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है कि सकारात्मक सोच द्वारा कैंसर का पूर्ण उपचार संभव हो, परंतु कैंसर के इलाज के दौरान इससे जीवन की गुणवत्ता में वांछित सुधार लाया जा सकता है।
मिथक : यदि आपके परिवार में किसी को कैंसर का इतिहास है अथवा नहीं, तो आपको भी वैसा ही होगा।
तथ्य : परिवार के इतिहास के आधार पर इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि आपके साथ भी वैसा ही होगा, क्योंकि केवल 5-10 प्रतिशत कैंसर ही पारिवारिक यावंशानुगत होते हैं।
मिथक: कैंसर सदैव अत्यंत दर्दनाक होते हैं।
तथ्य : ज्यादातर कैंसर आरंभिक अवस्था में दर्दनाक नहीं होते। विकसित अवस्था में असह्य पीड़ा के रहते
कुशल दर्द प्रबंधन तकनीक द्वारा दर्द का सफल उपचार भी संभव है।
मिथक : कैंसर पता चलने पर रोगी की शीघ्र मृत्यु अवश्यंभावी है।
तथ्य : कैंसर का जल्दी पता चलने पर अत्याधुनिक उपचार प्रणाली द्वारा कैंसर रोगियों के पांच वर्ष अथवा
उससे भी अधिक अवधि तक जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती है।
मिथक : बुजुर्ग व्यक्तियों में कैंसर का इलाज बहुत कठिन है।
तथ्य : कैंसर रोगियों का उपचार युवाओं एवं वृद्ध रोगियों में समान रूप से प्रभावशाली है।
मिथक : कैंसर रोगी उपचार के दौरान सामान्य जीवन नहीं व्यतीत कर सकता है।
तथ्य : बाह्य-रोगी विभाग, डे-केयर या अल्प-काल के लिए चिकित्सालय में भर्ती किए जाने पर सामान्य दैनिक गतिविधियों को जारी रख पाना संभव है।
मिथक : हेयर डाई, डियोडेंट्स व इत्र स्प्रे (परफ्यूम) कैंसर की उत्पत्ति का कारण बन सकते हैं।
तथ्य : इसका कोई ठोस वैज्ञानिक आधार नहीं है।
मिथक : कृत्रिम मिठास, रंग तथा जायका संबंधी खाद्य- पदार्थ कैंसर की संभावना को बढ़ाते हैं।
तथ्य : इन्हें कैंसर का कारक मानने का कोई पुष्ट वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।
मिथक: सेलफ़ोन का अत्यधिक प्रयोग अथवा आस-पास सेलफ़ोन टॉवर कैंसर के खतरे को बढ़ाता है।
तथ्य : डब्ल्यूएचओ ने गहन अध्ययन उपरांत मई 2006 व जून 2011 में निष्कर्ष निकाला था कि मोबाइल
विकिरण और मोबाइल टॉवरों के विकिरण से कैंसर होने का कोई विश्वसनीय साक्ष्य नहीं है।
कैंसर से बचाव एवं रोकथाम
कैंसर भगाएं शाकाहार अपनाएं-लगभग 30-50 प्रतिशत कैंसर से बचा जा सकता है। दोषपूर्ण जीवन-शैली में सुधार लाकर, तंबाकू व अल्कोहल से दूर रहकर तथा जन-स्वास्थ्य संसाधनों (जैसे वांछित टीकाकरण) को अपनाकर कैंसर की भयावह व्याधि से बच पाना संभव है। कैंसर से बचाव एवं रोकथाम के लिए निम्न युक्तियों पर ध्यान दिया जाना चाहिए
- नियमित शारीरिक व्यायाम तथा संयमित शाकाहारी खानपान करें। आहार में फलों एवं सब्जियों को प्रमुखता दें।
- मोटापे से बचें।
- पान-मसाला, तंबाकू, गुटखा, धूम्रपान, शराब आदि बुरी लतों के अनुमानतः 15-20 वर्षों में कैंसर पनपने तथा विकसित होने का ख़तरा बढ़ जाता है। अतः इनसे बचें।
- वायु-प्रदूषण व औद्योगिक प्रदूषण से यथासंभव बचें।
- हेपाटाइटिस-बी से बचाव का टीका लगवाएं। गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर से बचाव के लिए किशोरियों को इसका टीका लगवाकर कैंसर का ख़तरा 70 प्रतिशत तक कम किया जा सकता हैं। हेपाटाइटिस-बी तथा एच.पी.वी. के टीकाकरण द्वारा लगभग 10 लाख कैंसर रोगियों को कैंसर होने से बचाया जा सकता हैं।
- स्तन कैंसर के इतिहास वाले परिवार में लड़कियों को अत्यधिक वसायुक्त आहार के सेवन से बचना चाहिए।
- जननांगों के कैंसर से बचाव के लिए जननांगों की स्वच्छता आवश्यक है।
- परमाणु रिएक्टर से संबंधित विकिरण ख़तरनाक होते हैं और रक्त का कैंसर पैदा कर सकते हैं। चिकित्सा कार्य में प्रयुक्त एक्स-रे, सीटी स्कैन (कम्प्यूटेड टोमोग्राफ़ी), पेट स्कैन (पोजिट्रॉन एमिशन टोमोग्राफ़ी), रेडियोथेरेपी व कीमोथेरेपी भी कुछ रोगियों में रक्त का कैंसर (ल्यूकीमिया) उत्पन्न कर सकते हैं, परंतु इनसे लाभ की तुलना में हानि की संभावना काफ़ी कम होती है। सूर्य के प्रकाश में मौजूद अल्ट्रा-वायलेट किरणों से भी त्वचा के कैंसर का ख़तरा रहता है। अतः सतर्कता एवं सावधानी अपेक्षित है।
विद्यालयों के पाठ्यक्रम में कैंसर शिक्षा को सम्मिलित करके तथा विभिन्न प्रचार माध्यमों द्वारा कैंसर के संबंध में व्यापक प्रचार व प्रसार करके भी कैंसर की महामारी’ से काफी हद तक छुटकारा पाया जा सकता है।
कैंसर के प्रति लोगों को जागरूक एवं सावधान करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 04 फ़रवरी को मनाए जाने वाले ‘विश्व कैंसर दिवस’ का आयोजन भी सराहनीय प्रयास है।
कैंसर से बचाव में शाकाहार की भूमिका
कैंसर से बचाव में शाकाहार की भूमिका फलों एवं सब्जियों में मौजूद विशिष्ट पादप-रसायन
(फाइटोकेमिकल्स) कैंसररोधी क्षमता रखते हैं। साथ ही, शाकाहारी भोजन में वसा की मात्रा कम होने तथा
एंटीऑक्सीडेंट्स व विटामिन्स की प्रचुरता के कारण कैंसर का ख़तरा लगभग 40 प्रतिशत कम होता है। यही नहीं, शाकाहारी लोगों में रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी मांस खाने वाले लोगों की अपेक्षा अधिक मजबूत होती है। ‘अमेरिकन इन्स्टीट्यूट ऑफ़ कैंसर रिसर्च’ के शोध-कार्यो से इस तथ्य की पुष्टि होती है कि मांस को पकाये जाने पर एचसीए व पीएएच जैसे हानिकारक रसायन उत्पन्न होते हैं, जो कैंसर की संभावना को बढ़ाते
हैं। विभिन्न शोध-पत्रों से इस बात की भी पुष्टि हुई है कि शाकाहारी लोग मांसाहारी लोगों की तुलना में कम-से-कम 3-6 वर्ष अधिक जीवित रहते हैं। इस कारण, शाकाहार के प्रति लोगों को जागरूक करने तथा शाकाहारी खानपान को प्रोत्साहित करने के लिए प्रतिवर्ष 01 अक्टूबर को ‘विश्व शाकाहार दिवस’ मनाया जाता है।
आइए, अद्भुत कैंसररोधी क्षमता से भरपूर कुछ फलों एवंसब्जियों के विशिष्ट कैंसररोधी गुणों पर दृष्टिपात करें
सिट्रस फल : नीबू, नारंगी, संतरा, माल्टा, कीनो आदि खट्टे फलों में विटामिन ‘सी’, फ़ोलेट व रेशे प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, जो अपरोक्ष ही सही कैंसर के खतरे को कम करते हैं। इनमें मौजूद प्राकृतिक एंजाइम्स (ग्लूकारेज) कैंसरजनक तत्वों को विघटित कर शरीर से बाहर निकालते हैं। विशेषकर गूदे व छिलके में पाया जाने वाला ‘लिमोनीन’ नामक पादप- रसायन उक्त एंजाइम्स के स्तर को बढ़ाकर कैंसर से बचाव
में सहायक होता है।
अंगूर : अंगूर में ‘एलैमिक एसिड’ की उपस्थिति उन एंजाइम्स को बनने से रोकती है जो कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को पोषित करते हैं। अंगूर की बाहरी त्वचा में मुख्य रूप से पाए जाने वाले ‘फ़्लेवोनॉयड्स’ (विशेषकर ‘फ़िनोलिक्स’) हमें हृदय रोग से भी बचाते हैं। हरे अंगूर की अपेक्षा काले अंगूर में
फिनोलिक्स’ की मात्रा अधिक पाई गई है।
तरबूज : तरबूज में प्रचुरता से पाए जाने वाले ‘कैरोटीनॉइड्स’ (विशेषकर ‘कैन्टालोप’) शरीर की कैंसर के
प्रकोप से रक्षा करते हैं। खरबूजा व तरबूज में प्याज, लहसुन व अदरक की भांति ‘एडिनोसिन’ नामक एंटीकोएगुलेंट भी होता है, जो रक्त में थक्का बनने की प्रक्रिया को रोककर हृदय रोगों से हमारा बचाव करता है।
टमाटर :टमाटर शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट ‘लाइकोपीन’ का समृद्ध स्रोत है, जो पुरुषों में प्रोस्टेट ग्रंथि
के कैंसर से बचाव के अतिरिक्त फेफड़ों व आमाशय के कैंसर तथा हृदय रोगों से शरीर को बचाते हैं। टमाटर के अतिरिक्त लाइकोपीन के अन्य स्रोत हैं – पपीता, तरबूज,गाजर, स्ट्रॉबेरीज, खूबानी आदि।
मिर्च : मिर्च में मौजूद ‘कैप्सेसिन’ नामक पदार्थ सिगरेट के धुएं में विद्यमान कैंसरजनक तत्वों के लिए अवरोधक का कार्य कर जीन को क्षतिग्रस्त होने से बचाते हुए फेफड़ों की कैंसर से रक्षा करता है। मिर्च जितनी ही तीखी होगी, उसमें ‘कैप्सेसिन’ की मात्रा उतनी ही अधिक होगी।
लहसुन व प्याज : प्याज व लहसुन में स्वाद की तीक्ष्णता उसमें पाये जाने वाले ‘एलिसिन’ नामक रसायन के
कारण होती है, जो विशेषकर आहार-नाल एवं प्रोस्टेट के कैंसर से हमारा बचाव करता है। लहसुन को औषधीय रूप में न लेकर मूल रूप में नियमित सेवन कैंसर से बचाव में अधिक लाभप्रद है। इसमें ब्लड कॉलेस्ट्रॉल की मात्रा को नियन्त्रित करने का भी चमत्कारिक गुण है। अतः हृदय रोग से बचाव हेतु भी उपयोगी है। इस प्रयोजन हेतु प्रतिदिन कच्चे लहसुन की 1-2 क्लोव ली जानी चाहिए। लहसुन एंटीबायोटिक के रूप में भी उपयोगी है।
अदरक : शोध कार्यों से पता चला है कि अदरक में भी कैंसररोधी तत्व मौजूद हैं, जो ख़ासतौर से महिलाओं में होने वाले स्तन कैंसर या गर्भाशय ग्रीवा कैंसर में लाभकारी हैं। स्तन कैंसर के मामले में अदरक का सेवन ट्यूमर को बढ़ने से रोकता है और कैंसर में परिवर्तित होने की संभावनाओं को कम करता है।
गाजर : गाजर में मौजूद ‘बीटा कैरोटीन’ नामक रसायन अग्नाशय (पैंक्रियाज) व फेफड़ों के असाध्य कैंसर से शरीर की रक्षा करता है। प्रतिदिन आधा कप गाजर के रस का सेवन अत्यधिक धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों को भी फेफड़े के कैंसर की त्रासदी से बचा सकता है, यदि धूम्रपान पर तत्काल प्रभावी अंकुश लगा दिया जाए।
सोयाबीन : सोया में जेनिस्टीन’ नामक रसायन प्रचुरता से पाया जाता है, जो कैंसरग्रस्त कोशिकाओं की रक्त-आपूर्ति को बाधित कर उन्हें बढ़ने से रोकता है। स्त्रियों में पाया जाने वाला ‘एस्ट्रोजेन’ हॉर्मोन स्तन व अंडाशय की कैंसर कोशिकाओं को उत्तेजित करता है, जबकि ‘जेनिस्टीन’ स्तन व अंडाशय को कैंसर से बचाता है। अंकुरित अल्फाल्फा व मूंगफली में भी उक्त तत्व पाया जाता है।
हल्दी : यह अत्यधिक शक्तिशाली प्राकृतिक कैंसररोधी है, जो कैंसर कोशिकाओं को नष्ट कर व्याधि को बढ़ने से रोकती है और कीमोथेरेपी के दौरान दवा का असर भी बढ़ाती है। काली मिर्च, इलायची व सौंफ़ भी कैंसर से रक्षा करते हैं।
चाय : चाय की पत्तियों में मौजूद ‘पाली-फ़ीनॉल्स’ ऑक्सीकरणरोधी विशिष्टता के कारण कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को बढ़ने से रोककर तथा कैंसरकारक तत्वों को शरीर से बाहर निकालकर हमें कैंसर से बचाते हैं।
कैंसर संबंधी कुछ महत्वपूर्ण तथ्य-कैंसर भगाएं
- ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (डब्ल्यू.एच.ओ.) से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार विश्व में प्रतिवर्ष लगभग एक करोड़ चालीस लाख व्यक्ति कैंसर से ग्रस्त होते हैं और आने वाले दो दशकों में इसकी लगभग 70 प्रतिशत वृद्धि संभावित है। यह विश्व में मृत्युका दूसरा सबसे महत्वपूर्ण कारण है, जिससे वर्ष 2015 के आंकड़ों के अनुसार लगभग 88 लाख लोग प्रतिवर्ष मरते हैं।
- आज विश्व में प्रत्येक 6 में से एक मृत्यु कैंसर के कारण होती है। प्रतिदिन 20 हजार से अधिक व्यक्ति कैंसर के कारण काल कवलित होते हैं।
- विश्व में लगभग 28 मिलियन जीवित कैंसर रोगी हैं, और लगभग 12 से 16 प्रतिशत मौतें कैंसर के कारण होती हैं।
- कैंसर से होने वाली मौतों का लगभग एक-तिहाई खानपान या जीवन-शैली संबंधी कारणों से है (जैसे फलों व सब्जियों का कम इस्तेमाल, शारीरिक व्यायाम की कमी, मोटापा, तंबाकूका प्रयोग व मदिरा-पान आदि)।
- विशिष्ट कैंसरकारी संक्रमण (एच.पी.वी., हेपेटाइटिस बी) निम्न व मध्यम आयवर्गीय देशों में लगभग 25 प्रतिशत कैंसर के लिए उत्तरदायी हैं।
- कैंसर से होने वाली मौतों कालगभग 70 प्रतिशत निम्न तया मध्यम आयवर्ग वाले देशों में होती हैं। चिंता का विषय है कि कैंसर से होने वाली मौतों की संख्या एड्स,टी.बी. तया मलेरिया द्वारा सम्मिलित रूप से होने वाली मौतों से भी कहीं अधिक है।
- भारतवर्ष में, हृदय रोग के पश्चात् मृत्युका दूसरा सबसे बड़ा कारण कैंसर हैं।
- अनुमान है कि भारत में लगभग 25 लाख कैंसर रोगी हैं। प्रतिवर्ष लगभग 10 लाखनए कैंसर रोगियों का पता चलता है, जिसके एक-तिहाई (3-3.5 लाख) की हर साल मृत्यु हो जाती है।
- डब्ल्यू.एच.ओ. के अनुसार 2025 तकभारतवर्ष में कैंसर रोगियों की संख्या में 500 प्रतिशत की वृद्धि संभावित हैं, जिसमें 280 प्रतिशत आयु के बढ़ने से और 220 प्रतिशत तंबाकू के कारण।
- भारत में पुरुषों एवं महिलाओं में होने वाले पांच प्रमुख कैंसर हैं-स्तन कैंसर, बच्चेदानी के मुख का कैंसर, मुंह का कैंसर, फेफड़े का कैंसर तथा बड़ी आंत का कैंसर
- विश्व में सर्वाधिक पाया जाने वाला कैंसर है-फेफड़े का कैंसर, जिससे लगभग 17.6 प्रतिशत पुरुष प्रभावित हैं। जबकि भारतवर्ष में मुख-गुहा का कैंसर पुरुषों में तथा स्तन व गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर महिलाओं में सर्वाधिक पाए जाने वाले कैंसर हैं।
जिंदगी चुनो, तंबाकू नहीं-कैंसर भगाएं
भारत में लगभग 35-50 प्रतिशत कैंसर तंबाकू, पान- मसाला व गुटखा के कारण होते हैं। मुख कैंसर के अलावा होने वाले अन्य तंबाकू जनित कैंसर हैं. आहारनली का कैंसर, स्वरयंत्र का कैंसर, फेफड़े का कैंसर तथा मूत्राशय का कैंसर। पुरुषों में कैंसर का 50 प्रतिशत तथा महिलाओं में लगभग 25 प्रतिशत तंबाकू के कारण होना पाया गया है। दुर्भाग्यवश उनमें से लगभग 66 प्रतिशत का पता कैंसर की विकसित अवस्था में ही चल पाता है। समय रहते कैंसर का पता चल जाए और सही उपचार करा लिया जाए, तो करीब आधे कैंसर रोगी पूरी तरह ठीक किए जा सकते हैं।
कैंसर से होने वाली मौतों में लगभग 22 प्रतिशत तंबाकू के कारण होती हैं। अनुमान है कि 21वीं सदी में तंबाकू से लगभग 100 करोड़ से भी ज्यादा लोगों की मृत्यु हो सकती है। ‘तंबाकू महामारी’ प्रतिवर्ष लगभग 60 लाख लोगों को काल केगर्त में ढकेलती है, जिनमें से लगभग 6 लाख व्यक्ति ‘अप्रत्यक्ष धूम्रपान’ (अर्थात दूसरों के धूम्रपान से उत्पन्न धुएं के सेवन से मरते हैं।
हमारे देश में कानूनन सार्वजनिक स्थान पर धूम्रपान करने और किसी नाबालिग को या किसी शैक्षणिक संस्थान के 100 गज के भीतर तंबाकू बेचने पर आर्थिक दंड का प्रावधान है। साथ ही, प्रत्येक तंबाकू उत्पाद के पैकेट पर सामने की ओर 40 प्रतिशत भाग पर केंद्र सरकार द्वारा निर्देशित सचित्र स्वास्थ्य-चेतावनी का प्रदर्शन भी अनिवार्य है। तंबाकू के घातक दुष्परिणामों के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) के आह्वान पर प्रतिवर्ष 31 मई को ‘तंबाकू निषेध दिवस’ मनाया जाता है।
जिंदगी को न चुनकर तंबाकू को चुनना किसी के लिए भी एक मूर्खतापूर्ण आत्मघाती निर्णय ही कहा जाएगा।
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