सदी की महामारी डाइबिटीज-शरीर रूपी कारखाने को निरंतर चलाने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जिसका स्रोत ग्लूकोज या शर्करा है। आम भाषा में इसे हम चीनी या शुगर कहते हैं। एक स्वस्थ व्यक्ति के हर ऊत्तक या कोशिका तक रक्त-बहाव के जरिए ग्लूकोज निरंतर पहुंचता रहता है। अगर खून में ग्लूकोज की मात्रा लगातार सामान्य से अधिक हो जाए तो अंगों में विकार आने लगते हैं। डाइबिटीज मैलिटम ग्रीक भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ‘शहद का निरंतर बहना’। अगर खून में चीनी की मात्रा सामान्य से अधिक बढ़ जाए तो इसे ही हम मधुमेह के नाम से जानते हैं।
भयावह आंकड़े
2011 तक विश्व में 46 लाख लोगों को डाइबिटीज की वजह से प्राण गंवाने पड़े। हार्ट बाईपास या गुर्दे फेल होने के पीछे डाइबिटीज एक बड़ा कारण है। अंधापन एवं पैर काटने जैसी स्थिति तक पहुंचाने के लिए भी डाइबिटीज जिम्मेदार हो सकता है। इन सब बातों से यह रोग काफी डरावना प्रतीत होता है, किंतु फिर भी यह सुखद आश्चर्य है कि जीवनशैली में बदलाव एवं अन्य उपायों द्वारा इस रोग को 60-70 प्रतिशत तक रोका जा सकता है। दुखद पहलू यह है कि हमारी सरकारें इस रोग की रोकथाम के प्रति उदासीन हैं। इस लिए ऐसे सदी की महामारी डाइबिटीज कहा जा रहा है।
क्या है डाइबिटीज?
क्या है सदी की महामारी डाइबिटीज – खून में ग्लूकोज के लगातार बढ़े रहने की वजह से इंसुलिन नामक हॉर्मोन की कमी या उसकी कार्यक्षमता में कमी आने से या दोनों कारणों के होने पर शरीर में डाइबिटीज पनपता है। इंसुलिन, पेनक्रियाज अग्न्याशय की बीटा कोशिकाओं द्वारा स्रावित हॉर्मोन है, जो खून में ग्लूकोज का नियंत्रण करता है। इन्क्रेटिन हॉर्मोन की कमी को हाल ही में डाइबिटीज का प्रमुख कारण माना गया है।
मुख्यतः डाइबिटीज दो प्रकार की होती है-
- टाइप-1-
- टाइप-2
टाइप-1 | टाइप-2 | |
भारत में कुल रोगियों का प्रतिशत किस उम्र में | 4-5 प्रतिशत ज्यादातर बच्चों में | 95-96 प्रतिशत ज्यादातर बड़ी उम्र में |
लक्षाणों की तीव्रता | अधिक | कम |
वजन | कम | ज्यादातर का वजन सामान्य या अधिक |
मूत्र में कीटोन्स | मौजूद | सामान्यतः मौजूद नहीं |
मुख्य कारण | इंसुलिन की कमी | इंसुलिन की कार्यक्षमता में कमी |
इलाज | केवल इंसुलिन | अनेक विकल्प |
आनुवाशिकता | नहीं | मौजूद |
कीटोएसिडोसिस का खतरा | आशंका ज्यादा होती है | कम आशंका |
थायरॉइड पैराथायरॉइड या अन्य हामोन रोग | साथ-साथ मौजूद हो सकते हैं | कोई संबंध नहीं |
इंसुलिन पर निर्भरता | जीवनपर्यंत। जीवन के लिए जीवन के लिए आवश्यक | आवश्यक नहीं किंतु पुरानी डाइबिटीज आवश्यक होने पर (15 वर्षों से ज्यादा) 50 प्रतिशत लोगों को इंसुलिन की आवश्यकता पड़ती है |
अन्य प्रकार की डाइबिटीज भी हैं, जैसे गर्भावस्था की डाइबिटीज, अन्य हॉर्मोन रोगों द्वारा उत्पन्न होने वाली डाइबिटीज। कुछ दवाएं, जैसे स्टेरॉइड तथा अवसाद में काम आने वाली दवाएं भी डाइबिटीज को जन्म दे सकती हैं। कभी-कभार शल्य चिकित्सा या गर्भावस्था के समय भी अस्थायी डाइबिटीज हो सकती है।डाइबिटीज किसी भी उम्र में हो सकती है। कुछ स्थितियों में यह विशेष रूप से ज्यादा होती है, जैसे- सामान्य से अधिक वजन वाले व्यक्ति, डाइबिटीज रोगियों के रक्त संबंधी या परिवारजन, कम शारीरिक श्रम करने वाले व्यक्ति और जो लोग तनावग्रस्त व्यवसायों में हैं। शहरों में रहने वाले व्यक्ति को गांव में रहने वाले से 4 गुना अधिक डाइबिटीज होने की आशंका रहती है। शिशु का वजन जन्म के समय 4 किलो से अधिक होना या सामान्य से कम होना भी डाइबिटीज का कारण हो सकता है। गर्भावस्था में अस्थायी डाइबिटीज होने
वाली महिलाओं को भविष्य में डाइबिटीज का खतरा रहता है। पीसीओडी रोगग्रस्त महिलाओं में डाइबिटीज की संभावना अधिक रहती है।
डाइबिटीज के लक्षण
वजन कम होना, अधिक भूख-प्यास लगना, अधिक मूत्र,आना, सुस्ती, थकान, बार-बार संक्रमण होना, जननांगों में खुजली, पिंडलियों में दर्द, हाथ या पैरों में जलन, झनझनाहट, नपुंसकता, नज़र की कमजोरी और देरी से घाव भरना डाइबिटीज के मुख्य लक्षण हैं। अन्य लक्षण हैं –
- तेज श्वास चलना, मूर्च्छित होना।
- सुस्ती आना या अधिक नींद आना।
- बार-बार दस्त लगना।
- तेज
- बुखार।
- शुगर लगातार ज्यादा या कम आए।
- मूत्र में भारी मात्रा में कीटोन्स आना।
- कई बार तबीयत बिगड़ने की स्थिति में गोलियों के स्थान पर इंसुलिन लेना पड़ता है। बाद में सामान्य स्थिति आने पर इसे बंद कर पुनः गोलियां चालू की जा सकती हैं।
नेत्र | कम उम्र में मोतिया बनना, कालापानी, परदे की खराबी एवं अधिक खराबी होने पर अंधापन। |
हृदय एवं धमनियां | हृदयाघात, हृदयशूल, उच्च रक्तचाप, पिंडलियों की मांसपेशियों में खून की कमी से होने वाला दर्द। |
गुर्दा | मूत्र में अधिक प्रोटीन्स जाना, पैरों पर या पूरे शरीर पर सूजन और अंत में गुर्दे का कार्यहीन होना |
मस्तिष्क एवं स्नायुतंत्र | उच्च मानसिक क्रियाओं की विकृति, शारीरिक अनुभूतियों खासकर के पैरों की। तलवों या पैरों में दर्द एवं जलन तथा चक्कर आना, भोजन के पश्चात पेट फूलना, नपुंसकता, पक्षाघात। |
डाइबिटीज के कारण
भारत में डाइबिटीज पिछले 2-3 दशकों से तेजी से बढ़ी है। इसका मुख्य कारण यह है कि सारे भारतीयों में आनुवांशिक रूप से डाइबिटीज होने का खतरा विश्व में सबसे अधिक है। इसके अलावा नई जीवनशैली से तेजी से उपजी संपन्नता एवं शहरीकरण भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। परंतु मुख्य रूप से रहन-सहन में आरामतलबी का बढ़ना, शारीरिक श्रम की कमी, अधिक कैलोरीयुक्त भोजन करना, भागमभाग भरी जिंदगी एवं मानसिक तनाव मधुमेह के मुख्य कारण हैं।
जांच
वैसे तो हर भारतीय ‘हाइरिस्क’ श्रेणी में आता है, किंतु ऊपर बताए गए समूह के लोगों को समय-समय पर अपनी शुगर की जांच करवानी चाहिए, ताकि समय रहते डाइबिटीज का निदान हो सके। ब्लड ग्लूकोज की जांच द्वारा आसानी से डाइबिटीज का पता लगाया जा सकता है। रोगी की प्रारंभिक जांचों में रक्त वसा, सीरम, क्रिएटिनिन, मूत्र की जांच,ईसीजी, आंख के पर्दे की जांच का होना भी आवश्यक है। ग्लाइकोसाइलेटेड हीमोग्लोबिन जांच द्वारा ब्लड ग्लूकोज का पिछले 8-10 सप्ताह का स्तर ज्ञात हो जाता है। इसे दिन में किसी भी समय करवाया जा सकता है।
जरूरी है नियमित जांच
आज के युग में बड़ी आसानी से घर बैठे डाइबिटीज की जांच मात्र एक बूंद से भी कम रक्त द्वारा कुछ क्षणों में विश्वसनीय ग्लूकोज मीटर द्वारा की जा सकती है। नियमित जांच ही डाइबिटीज के इलाज की सफलता की कुंजी है। ज्यादातर लोगों में ग्लूकोज का घटना या बढ़ना लक्षण रहित होता है। निरंतर जांच द्वारा ही रोग की सही स्थिति का आकलन संभव है। कुछ दिनों में एक बार या एक दिन में 4-5 बार जांच की संख्या रोग की स्थिति के अनुसार चिकित्सक निर्धारित करते हैं। मधुमेह से शरीर का हर अंग प्रभावित होता है। कई बार तो विकृति होने पर ही रोग का निदान होता है, जबकि रोग कई वर्षों से चुपचाप शरीर में पनप रहा होता है। अतः इस रोग को आइसबर्ग रोग कहा जाता है।
सदी की महामारी डाइबिटीज का नियंत्रण
निम्नलिखित विषयों पर ध्यान
रखकर किया जा सकता है:
- वजन
- रक्तचाप
- रक्त ग्लूकोज
- रक्त वसा
- जीवनशैली
उपचार
सदी की महामारी डाइबिटीज से बचने के लिए उपचार बहुत जरुरी है शुरुआती वर्षों में डाइबिटीज ज्यादातर लोगों में लक्षणरहित होता है। इस समय लक्षणों के भरोसे रहने से कई बार कुछ लोग इलाज नहीं लेते हैं। इस स्थिति में लगातार ग्लूकोज बढ़े रहने से दीर्घकालीन दुष्परिणाम सामने आते हैं। उपचार का लक्ष्य रक्त ग्लूकोज को सामान्य के करीब रखना है। हर रोगी का लक्ष्य भिन्न-भिन्न हो सकता है।
उपचार के तीन मुख्य स्तंभ हैं –
- भोजन
- व्यायाम
- दवाएं
डाइबिटीज के लिए भोजन
- भोजन की मात्रा व्यक्ति के शारीरिक श्रम एवं दिनचर्या के अनुसार निर्धारित की जाती है। भोजन कीगुणवत्ता इस प्रकार हो कि उससे रोगी को सारे आवश्यक तत्व (विटामिन्स व मिनरल्स) भी मिल जाए तथा पेट भी भर जाए।
- कम कैलोरीयुक्त एवं कम कार्बोहाइड्रेट वालेभोज्य-पदार्थ ज्यादा मात्रा में खाए जा सकते हैं,
- जैसे – ककड़ी, खीरा, टमाटर, मूली, पत्तागोभी, प्याज की सलाद और हरी सब्जियां। छिलके वाली दालें एवं कम मीठे फल सामान्य मात्रा में खाए जा सकते हैं। छाछ एवं क्रीम रहित सूप सामान्य या ज्यादा मात्रा में भी लिए जा सकते हैं।
- अधिक कैलोरीयुक्त भोजन जैसे-घी, तेल, मलाई, मक्खन, गुड़, चीनी, लाल मांस और अंडे की जर्दी आदि से परहेज करना आवश्यक है। सफेद चावल, आलू या अधिक मीठे फल भी कम ही प्रयोग में लेने चाहिए।
- ब्राउन राइस अथवा सेला चावल या छिलके सहित चावल का प्रयोग किया जा सकता है। बासमती चावल का प्रयोग कम कम से कम करें।
- मैदा, मिठाइयां, शीतल पेय, फलों का रस, चॉकलेट, नारियल का भी प्रयोग नहीं करना चाहिए। मिस्सी रोटी बेहद उपयोगी है, क्योंकि इसमें रेशा यानी फाइबर अधिक होता है।
- मांसाहारी रोगी मछली या मुर्गे का मांस खा सकते हैं, बशर्ते वह कम घी या तेल ठीक से बना हुआ हो।
- मानव शरीर को बाहर से घी, चीनी लेने की आवश्यकता कतई नहीं है। ये शरीर के भीतर से आवश्यकतानुसार निर्मित होते रहते हैं।
- सूखे मेवों में बादाम एवं अखरोट कम मात्रा में प्रयोग किए जा सकते हैं।
मोटापे का डाइबिटीज से सीधा संबंध है। जिनका वजन ज्यादा है उन्हें वजन घटाने पर ध्यान देना आवश्यक है और यह कम कैलोरीयुक्त भोजन एवं व्यायाम द्वारा ही संभव है। चूंकि चीनी एवं वसायुक्त भोजन में कैलोरी अधिक होती है, इसलिए इन चीजों का प्रयोग मोटे व्यक्ति के लिए अधिक हानिकारक है।
कौन-सा तेल प्रयोग करें?
सदी की महामारी डाइबिटीज की महामारी से बचने के लिए तेलों का प्रयोग कम मात्रा में (वजन ज्यादा हो तो) या सामान्य मात्रा में (यदि वजन सामान्य या कम है तो) किया जा सकता है। किसी भी एक प्रकार का तेल सर्वोत्तम नहीं होता है। अनेकों प्रकार के तेलों को प्रयोग कीजिए जैसे- सरसों, तिल्ली, सोया, सूरजमुखी इत्यादि। तेलों को बार-बार बदल-बदलकर या कई प्रकार के तेल एक साथ प्रयोग में ले सकते हैं, जैसे दो या तीन सब्जियां अलग-अलग तेलों में बनाना ठीक होता है। शरीर में किसी भी तरह के अतिरिक्त विटामिन या एंटीऑक्सीडेंट की आवश्यकता नहीं होती है।
सदी की महामारी डाइबिटीज आवश्यक निर्देश
खाना समय पर खाएं। नाश्ता जल्दी करें। देर रात भोजन से बचें। एक साथ अधिक मात्रा में न खाएं, लंबे समय तक भूखे न रहें। रात्रि भोजन हल्का करें। दालों को छिलके सहित व आटे को चोकर सहित खाएं। कृत्रिम मिठास वाले पदार्थ जैसे सूक्रालोज प्रयोग में ले सकते हैं, किंतु इनके बारे में अभी पूर्ण वैज्ञानिक जानकारी का अभाव है अतः इन्हें कम ही प्रयोग करें। भोजन का कार्बोहाइड्रेट वाला हिस्सा खून में ग्लूकोज को अधिक प्रभावित करता है, अतः इस प्रकार का भोजन निर्धारित करें, जिससे नित्य एक निश्चित मात्रा में ही कार्बोहाइड्रेट शरीर में जाए और शुगर लेवल स्थिर रहे। जब रक्त ग्लूकोज नियंत्रित रहेगा तो मीठी चीजें भी कम मात्रा में ली जा सकती हैं।
डाइबिटीज के समय व्यायाम
नित्य 45 मिनट व्यायाम करना आवश्यक है। शारीरिक श्रम से खून में ग्लूकोज का नियंत्रण बेहतर होता है। तेज पैदल चलना, साइकिल चलाना, तैरना, बाहरी खेलों में हिस्सा लेना, ऐरोबिक्स, कसरत करना आदि व्यायाम के विविध रूप हो सकते हैं। किस व्यक्ति को कितना एवं कौन-सा व्यायाम या श्रम करना है, यह चिकित्सक द्वारा निर्धारित करवाना चाहिए।
डाइबिटीज की दवाएं
पिछले कुछ वर्षों में डाइबिटीज के इलाज में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं। अनेकों नई दवाओं के आने से इलाज बेहतर एवं सुविधाजनक हो गया है। चिकित्सक रोगी के वजन, उम्र, दिनचर्या, गुर्दो की स्थिति आदि अनेक बातों को ध्यान में रखकर दवा का निर्धारण करते हैं। इंसुलिन को लेकर लोग बेहद परेशान होते हैं, किंतु आज इंसुलिन बहुत आसान तरीके से दिया जा सकता है। बच्चों की डाइबिटीज (टाइप 1) में केवल इंसुलिन ही एकमात्र उपचार है। टाइप 2 डाइबिटीज में जब चिकित्सक इंसुलिन की सलाह दें तो डरें नहीं। इलाज सदा प्रशिक्षित चिकित्सक से लें और हमेशा दवा को पर्ची पर लिखवाकर ही लें। डाइबिटीज के साथ यदि कोई और रोग हो जाए जैसे-उल्टी-दस्त, तेज जुखाम, बुखार, संक्रमण (निमोनिया, दांत का संक्रमण, मूत्र संक्रमण, पक्षाघात या हृदयाघात होना आदि) तो रक्त ग्लूकोज अधिक बढ़ सकता है तथा कई बार बहुत अधिक बढ़ने से रक्त में कीटोन्स बनने लग जाते हैं और गंभीर स्थिति उत्पन्न हो सकती है। जब भी शरीर में उपरोक्त स्थिति पैदा होती है तो ग्लूकोज बढ़ाने वाले हॉर्मोन ज्यादा बनते हैं, जो इंसुलिन के प्रभाव को कम करते हैं। इस स्थिति में लिवर भी ज्यादा मात्रा में ग्लूकोज बनाता है।
सदी की महामारी डाइबिटीज-यह भी जानें
- शरीर में पानी एवं नमक की कमी न होने दें। थोड़ी-थोड़ी देर में पानी, चाय या छाछ पिएं। नमक एवं अन्य तत्वों की पूर्ति के लिए सूप, नीबू पानी, छाछ इत्यादि लें।
- ग्लूकोज की जांच बार-बार या 4 से 6 घंटे में करें। ज्यादा होने पर कीटोन्स की जांच करें।
- यदि लगातार शुगर 300 से ऊपर आ रही हो और तबीयत ठीक न हो तो डॉक्टर से संपर्क करें और आवश्यकतानुसार इंसुलिन या दवा बढ़ाएं।
- ध्यान रहे तबीयत बिगड़ने पर या शुगर बढ़ने पर दवा या इंसुलिन बंद न करें। कई बार उल्टी की वजह से भोजन न कर पाने की स्थिति में भी दवा आवश्यक होती है।
- यदि उल्टी की वजह से कुछ ठोस आहार न ले पा रहे हों तो कुछ पेय पदार्थ भी लिए जा सकते हैं। शरीर में कैलोरी की आवश्यकता पूरी करना जरूरी है नहीं तो कीटोन्स बनने का खतरा रहता है। अतः फलों का रस या दूध या अन्य हल्का भोजन लिया जा सकता है।
- बचा भोजन फ्रिज में न लूंसे, बल्कि जानवरों को दें।
- स्कूलों, कॉलेजों में स्वास्थ्यवर्द्धक भोजन उपलब्ध होना चाहिए और फास्टफूड प्रतिबंधित होना चाहिए। आलू चिप्स, कोल्ड ड्रिंक्स, मिठाइयां, नमकीन आदि पर स्पष्ट अंकित होना चाहिए कि उनमें कितनी वसा एवं कैलोरी है तथा यह भी कि इनके अधिक सेवन से स्वास्थ्य को खतरा है।
बच्चों में डाइबिटीज होने पर
- माता-पिता बच्चों के साथ पैदल चलें, उन्हें खेलने के लिए, व्यायाम के लिए प्रेरित करें। व्यायाम किसी भी रूप में घर पर या बाहर जरूर करें।
- छुट्टी वाले दिन सभी सदस्य साथ-साथ पार्क या खुली जगह पर जाएं।
- वाहन गंतव्य से कुछ दूर पार्क करें, ताकि पैदल चल सकें।
- दुकान-स्कूल-ऑफिस जहां भी संभव हो लिफ्ट का उपयोग न करें। सीढ़ी से चढ़े, लंबे रास्ते से पैदल जाएं। पानी पीने या टॉयलेट के लिए उठे, तो कुछ देर चलें। डांस, एनसीसी, स्काउटिंग, एनएसएस, समाज सेवा जैसी गतिविधियों में भाग लेने के लिए बच्चों को प्रेरित करें।
- टीवी या कम्प्यूटर के सामने बैठने की समय सीमा तय करें, जो एक घंटा प्रतिदिन से अधिक नहीं होनी चाहिए। यदि बच्चे लंबे समय तक टीवी देखने से बाज न आएं, तो सख्ती कर सकते हैं। टीवी देखने और मोटापे का गहरा संबंध है। भोजन करते समय भी टीवी बंद कर दें।
- कुछ फल तथा सब्जियों में रेशा, विटामिन्स एवं मिनरल होते हैं तथा ऊर्जा कम। अतः इनका प्रयोग ज्यादा करें। तेल, घी, मलाई, मक्खन, चीज का प्रयोग कम करें।
- परिष्कृत भोजन जैसे फास्टफूड, पिज्जा, बर्गर का प्रयोग कम या बंद करें या इनके साथ हरी सब्जी की मात्रा बढ़ाएं।
- कोल्ड ड्रिंक्स, चॉकलेट, आलू चिप्स खाना बंद करें। स्कूल टिफिन में पराठों के स्थान पर चपाती, हरी सब्जी या पत्ते वाली सब्जी के पराठे रखें।
- खाना एक निश्चित समय एवं स्थान पर करें। भूख लगने पर ही भोजन करें।
- भोजन से पहले कुछ क्षण मन को शांत रखें, भोजन को निहारें और फिर धीरे-धीरे पूरा चबाकर खाएं।
- खाना थोड़ी मात्रा में धीरे-धीरे परोसें। खाने की किसी भी चीज को छोटे आकार का बनाएं जैसे-छोटी चपाती, इसी प्रकार छोटी कटोरी, प्लेट एवं चम्मच उपयोग में लें।
- भोजन के पहले, बीच और बाद में सलाद अवश्य लें।
डाइबिटीज और पांव का जख्म
डाइबिटीज रोगी में पांव पर मामूली से दिखने वाले घाव जे शुरुआत में चमड़ी तक ही सीमित होते हैं, अंत में पैर कटवा का कारण बन सकते हैं। अमेरिका जैसे देशों में भी प्रतिवर्ष भार्ट संख्या में डाइबिटीज के कारण गैंगरीन होने पर पैर कटवान पड़ता है। आखिर इन बुरी स्थिति में पैर क्यों चला जाता है। डाइबिटीज में तंत्रिकाओं की खराबी तथा धमनियों की खराब (रक्त प्रवाह में रुकावट) से मामूली-सी चोट जैसे, कील, कांटा
कंकर आदि द्वारा भी घाव बना देती है, जो जल्दी उपचार न करा पर विकराल रूप ले लेती है। पैर काटने के अलावा जान बचान का कोई रास्ता नहीं होता है। यदि संक्रमण है, तो उसका उचित उपचार किया जा सकता है। पैर में भी बाईपास शल्य चिकित्स द्वारा धमनियों की खराबी का इलाज संभव है। जितना जल्दी इला
करवाया जाए, उतना ही अधिक फायदा होता है।
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