तुलसीदास का जीवन परिचय – भारतीय साहित्य के महान कवियों में से एक, संत तुलसीदास का नाम अवश्य आता है। उन्होंने न केवल कविता की रचना की, बल्कि उनका योगदान धार्मिक और सामाजिक जीवन के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण रहा है। तुलसीदास का जीवन एक अद्वितीय यात्रा का परिचय है, जो हमें उनके विचारों, रचनाओं और उनके समय के सांस्कृतिक संदर्भ को समझने का अवसर प्रदान करता है।
कवि और संत तुलसीदास का जीवन भारतीय साहित्य के एक अमूल्य रत्न के समान है। उनकी रचनाओं ने हमारे मनोबल को बढ़ाया और हमें धार्मिकता की दिशा में मार्गदर्शन किया है। इस लेख में, हम उनके जीवन की यात्रा पर विचार करेंगे, उनके साहित्यिक योगदान को समझेंगे और उनकी महत्वपूर्ण रचनाओं का अध्ययन करेंगे।
तुलसीदास का जन्म कब हुआ था ?
तुलसीदास का जन्म 13 August 1532 को हुआ था। उनके जन्मस्थल राजापुर नामक छोटे से गाँव में था। उनके पिता का नाम आत्मराम था और माता का नाम हुलसी था। बचपन में ही तुलसीदास विद्या के प्रति रुचि दिखाते थे और वे बहुत अच्छे पठक थे। वे गंगा नदी के किनारे बैठकर वेदों और पुराणों का अध्ययन करते थे।
तुलसीदास का जन्म कहां हुआ था
राजापुर नामक छोटे से गाँव में था।
तुलसीदास का जीवन परिचय और उनकी रचनाएँ
तुलसीदास जी ने अपने जीवनकाल में कई महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध रचनाएँ लिखी, जिनसे वे भारतीय साहित्य में अद्वितीय स्थान प्राप्त कर चुके हैं। यहाँ तुलसीदास की प्रमुख रचनाएँ एक संक्षिप्त सूची दी गई है:
- रामचरितमानस: यह तुलसीदास जी की सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण रचना है। इसमें भगवान राम की कथाओं को आदर्शता से प्रस्तुत किया गया है।
- विनय पत्रिका: इस रचना में तुलसीदास जी ने भगवान से अपनी विनम्रता और शरणागति की भावना सुंदरता से व्यक्त की है।
- कवितावली: इस रचना में तुलसीदास जी ने विभिन्न देवी-देवताओं की महिमा और भक्ति की महत्वपूर्णता को प्रकट किया है।
- गीतावली: यह रचना भगवान की भक्ति और उनके लीलाओं को बताती है, और इसमें भक्ति और साधना के मार्ग पर गुरु की महत्वपूर्णता पर भी बल दिया गया है।
- तुलसीरामायण: यह रचना रामायण की विभिन्न कथाओं को तुलसीदास जी की दृष्टि से प्रस्तुत करती है।
- रामस्तवन: इस रचना में तुलसीदास जी ने भगवान राम की महिमा को गान किया है और उनके गुणों की प्रशंसा की है।
- बालकाण्ड: यह रचना ‘रामचरितमानस’ के पहले खंड को कहा जाता है, जिसमें भगवान राम के बचपन की कथाएं हैं।
- सुंदरकाण्ड: यह रचना ‘रामचरितमानस’ के दूसरे खंड को कहा जाता है, जिसमें भगवान राम द्वारा लंका में रावण का संहार किया जाता है।
तुलसीदास जी की ये रचनाएँ हमें भक्ति, धर्म, भाग्यशाली जीवन और साधना के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को सिखाती हैं। उनके द्वारा लिखी गई ये रचनाएँ आज भी मानवता के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।
तुलसीदास के दोहे | तुलसीदास के दोहे और चौपाई
तुलसीदास जी के दोहे हमें जीवन के महत्वपूर्ण सत्यों को सिखाते हैं। उनकी दोहों में छिपी ब्रह्मा-ज्ञान और मानवता के मूल सिद्धांत हमें प्रेरित करते हैं। यहाँ तुलसीदास जी के कुछ प्रसिद्ध दोहे हैं:
- बिनु प्रेम भगति बिनु संतोष कछु नहिं। जब तक हम प्रेम और भगति के बिना नहीं रहते, हमें संतोष नहीं मिलता।
- सत्संगति मिले सो सत्संगति, चिन्ता तिलक मंगल। सद्गुरु की सत्संगति मिलने से ही हमारी चिंता दूर होती है, जैसे तिलक मंगल की अंगुली पर लगता है।
- दुर्बिनि बिना नैन परम पद पान नहिं। बिना दुर्बिन के नैनों से परम पद की प्राप्ति नहीं होती, यानी अन्तरंग दर्शन के बिना ज्ञानी बनना संभव नहीं है।
- राम बिना कौन काजी, छाने बिना नीर। बिना भगवान के किसी काम की पूर्णता नहीं हो सकती, जैसे बिना छाने के नीर की शुद्धता नहीं हो सकती।
- रघुकुल रीति सदा चली आई, प्रान जाए पर वचन न जाए। रघुकुल के धर्म का पालन सदा करना चाहिए, चाहे प्राण जाए परन्तु वचन नहीं जाने चाहिए।
- सत्य सो बोलने ये मरने की बात है, नर पशु मनुष्य कहावत है। तुलसीदास जी इस दोहे में सत्य की महत्वपूर्णता को बताते हैं। सत्य कहना मरने के समान है, जबकि नरों को ही मनुष्य कहा जाता है।
- सब काहे छोड़ बिनु सुधी लखि आव। तुलसीदास जी इस दोहे में बताते हैं कि हमें सब छोड़कर भगवान की शरण में आना चाहिए।
- रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय। इस दोहे में तुलसीदास जी हमें प्रेम की महत्वपूर्णता सिखाते हैं। प्रेम का धागा मजबूत होना चाहिए, उसे तोड़ना नहीं।
- बिना सुख बिना धन धरम सब सु नहीं। तुलसीदास जी इस दोहे में बताते हैं कि सच्चे सुख और समृद्धि धर्म में ही हैं।
- राम नाम अनुराग है, परब्रह्म प्रेम आत्मा। इस दोहे में तुलसीदास जी राम नाम के महत्व को बताते हैं, जिसे परम ब्रह्म में प्रेम ही आत्मा है।
तुलसीदास जी के दोहे हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझाते हैं और हमें सच्चे मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्रदान करते हैं। उनकी शिक्षाएँ हमें सत्य, प्रेम, धर्म और भक्ति की महत्वपूर्णता को समझाती हैं।
तुलसीदास का जन्म और मृत्यु
तुलसीदास का जन्म 13 August 1532 को हुआ था। उनके जन्मस्थल राजापुर नामक छोटे से गाँव में था। उनके पिता का नाम आत्मराम था और माता का नाम हुलसी था।
तुलसीदास जी की मृत्यु की जानकारी कम है, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद उनकी रचनाओं ने उन्हें अमर बना दिया। उनकी महत्वपूर्ण रचनाओं में से एक ‘रामचरितमानस’ है, जो उनकी भक्ति और संत मान्यता को आदर्शित करती है।
तुलसीदास का पूरा नाम क्या है
तुलसीदास का पूरा नाम गोस्वामी तुलसीदास है।
तुलसीदास का संघर्ष और समर्पण
तुलसीदास का जीवन संघर्षों से भरपूर रहा है। उन्होंने अपने जीवन में कई कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने अपने जीवन को भगवान की भक्ति में समर्पित कर दिया और उन्होंने भक्ति के माध्यम से समाज को दिशा दी।
तुलसीदास की पत्नी का नाम
तुलसीदास जी की पत्नी का नाम रति था।
रामचरितमानस: एक अद्वितीय महाकाव्य
तुलसीदास की सबसे मशहूर रचना ‘रामचरितमानस’ है, जो उनके उत्कृष्ट साहित्यिक योगदान की गर्मी और महत्व को प्रकट करता है। यह महाकाव्य ‘रामायण’ की कथा को अपनी विशेष दृष्टिकोण से प्रस्तुत करता है और राम के विभिन्न पहलुओं को प्रकट करता है।
तुलसीदास के गुरु कौन थे?
तुलसीदास जी के गुरु स्वामी श्री नारहरिदास थे।
निष्कर्ष:
संत तुलसीदास का जीवन परिचय हमें उनके साहित्यिक, धार्मिक और सामाजिक योगदान की महत्वपूर्णता को समझने में मदद करता है। उनकी रचनाएँ हमें मानवता के मूल मूल्यों और भगवान के प्रति श्रद्धा की महत्वपूर्णता को याद दिलाती हैं।
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तुलसीदास का जीवन परिचय FAQ
Q. 1 तुलसीदास का जन्म कब हुआ था?
A. तुलसीदास का जन्म सन् 1532 में हुआ था।
Q: 2 उनकी सबसे मशहूर रचना कौनसी है?
A. तुलसीदास की सबसे मशहूर रचना ‘रामचरितमानस’ है।
Q. 3 तुलसीदास का पूरा नाम क्या है?
A. तुलसीदास का पूरा नाम गोस्वामी तुलसीदास है।
Q. 4 तुलसीदास की पत्नी का नाम ?
A. तुलसीदास जी की पत्नी का नाम रति था।
Q. 5 तुलसीदास के गुरु कौन थे ?
A. तुलसीदास जी के गुरु स्वामी श्री नारहरिदास थे।
Q. 6 तुलसीदास का जन्म कहां हुआ था?
A. राजापुर नामक छोटे से गाँव में था।
Q. 7 तुलसीदास के माता-पिता का नाम क्या है ?
A. उनके पिता का नाम आत्मराम था और माता का नाम हुलसी था।